आलू राजा

रविवार, 15 अप्रैल 2018

जल समस्या : संरक्षण ही हल

बिन पानी सब सून
प्रकृति और प्राणी एक दूसरे के पूरक हैं।प्रकृति प्राणियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है और प्राणी प्रकृति को पूज्यनीय मानकर उसको पल्लवित करते हुए त्याग पूर्वक भोग करता रहा है।प्रकृति ने हमे जल के रूप में अपना सर्वश्रेष्ठ उपहार प्रदान किया है।प्रकृति यह जानती थी कि मनुष्यों को जीवन यापन के लिए जल की  अत्यधिक  आवश्यकता है और रहेगी इसलिए उसने पानी के असीम श्रोत बनाए।केवल उसने धरती के नीचे ही नहीं अपितु ऊपर से वर्षा के रूप में जल उपलब्ध कराने की व्यवस्था दी।
लेकिन मनुष्य ने प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों का ऐसा दुरपयोग किया कि आज लातूर और बुन्देलखण्ड का उदाहरण हम सबके सामने है।आज संपूर्ण विश्व में जल की कमी के कारण त्राहि त्राहि है।इसी आने बाले जल संकट को  हमारे  महापुरुषों ने कई सदियों पहले पहचान लिया था और कहा था "रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून" ।
मानसून में देरी , ग्लोबल वार्मिंग , एवं जल के अनावश्यक दोहन के कारण भूजल स्तर में बहुत कमी आ गई है।पानी के कारण झगड़े उत्पन्न हो रहे हैं और उनसे लोगों की मृत्यु हो रही है।निर्गुण भक्ति धारा के कवि संत कबीर ने सदियों पहले कहा था "पानी बिन मीन प्यासी , मोहे सुन आबत हासी।"उस समय ये हँसने का विषय रहा होगा लेकिन आज इस विषय ने व्यक्ति के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।पर्यावरण के बचाव में योगदान करने वाली संस्था इंटरगवर्नमेंटल पेनल ऑन क्लाइमेट चैंज के अध्यक्ष एवं नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डॉ राजेन्द्र पचौरी ने चेतावनी दी थी कि भारत समेत कई देशों की कृषि पैदावार जलवायु परिवर्तन के कारण बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका है।ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेजी से पिघलते हिम ग्लेशियर ने भी जल संकट को और बढ़ा दिया है।जिस पानी को लेकर सारी दुनिया सूखती जा रही है वहीं भारत में आम लोग जल संरक्षण के विषय पर गंभीर नहीं हैं।आम जनमानस के साथ सरकार को भी अपने दृष्टिकोंण में बदलाव लाना होगा।
भारत में हालात बहुत चिंताजनक हैं केंद्रीय भूजल बोर्ड के एक अनुमान के अनुसार अगर भूमिगत जल का अंधाधुंध प्रयोग का सिलसिला जारी रहा तो देश के 15 राज्यों में भूमिगत जल के भंडार 2025 तक पूरी तरह खाली हो जाएँगे।वर्षा जल के संग्रह के अभाव , अवै ज्ञानिक तरीकों से पानी का उपयोग तथा वर्षा की असमानता आदि कारणों से देश में प्रतिवर्ष कहीं न कहीं सूखे की स्थिति बनी रहती है।
भूमिगत जल के अवैज्यानिक और अंधाधुंध उपयोग से भी जल संकट गहरा रहा है।तेजी से हो रहे जल दोहन से मानव को केवल जल संकट का ही ख़तरा नहीं है अपितु मानव को शुद्ध पानी मिल जाए ये भी एक चुनौती हो गई है।दुनिया में 50 लाख लोग दूषित जल के कारण पैदा होने बाली बीमारियों से मर जाते हैं।यह संख्या विभिन्न युद्ध में मारे जाने वाले लोगों से 10 गुना अधिक है।प्रतिवर्ष 15 लाख बच्चे जल जनित बीमारियों की चपेट में आकर काल के गाल में समा जाते हैं।आज देश के कई हिस्सों में भूमिगत जल विकलांग बनाने बाले फ्लोराइड की अधिकता के चलते पीने योग्य नहीं रहा।जल जनित बीमारियों से प्रतिवर्ष लाखों लोग मृत्यु के मुँह में समा रहे हैं।इनमें से इधिकांश विकासशील देश के हैं।भारत में प्रतिदिन 16000 मौतें दूषित पेयजल के कारण उत्पन्न हुई बीमारियों से हो रहीं हैं।
हमारे देश में वर्षा के रूप में काफ़ी मात्रा जल प्राप्त हो जाता है लेकिन उसका बड़ा हिस्सा विभिन्न नदियों के जरिए समुद्र में व्यर्थ चला जाता है।आज आवश्यकता है कि वर्षा का जल संरक्षित किया जाए।वर्षा के जल  को हम अपने घर की छत पर या घर के नीचे संरक्षित कर सकते हैं।विश्वभर में प्रत्येक वर्ष 160 क्यूबिक किलोलीटर मात्रा में भूमिगत जल निकाला जाता है और इसकी भरपाई नहीं हो पाती ।पॅछले 50 वर्षों में प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता तेजी से घट रही है।जो सन 1951 में 5200 घन लीटर की तुलना में सन 2001 में केवल 1800 घन लीटर ही रह गई और यदि समय रहते ज़रूरी उपाय नहीं किए गए तो 2050 तक पानी की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता 1140 घन लीटर ही रह जाएगी।
भूमिगत जल राष्ट्र की सम्पत्ति है तथा इस संपत्ति का उपयोग संयमित और सुनियोजित मात्रा में ही होना चाहिए।आज आवश्यकता है कि महानगरों और कस्वों में वाटर हार्वेस्टिंग का प्रयोग करके मकानों की छतों पर पानी को रोका जाए और उस पानी का सदुपयोग किया जाए।घरेलू कार्यों जैसे नहाने , सब्जी धोने,घर धुलने , कुत्ते तथा पालतू जानवर को  नहलाने , गाड़ी धोने कपड़े धोने आदि में जल का प्रयोग कम से कम मात्रा में करना चाहिए।पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में अपने जीवन को विलासता पूर्ण बनाने के लिए स्वमिंग पुल , वाटर पार्क , पार्क आदि जल दोहन के केंद्र बनते जा रहे हैं।घर पर जो व्यक्ति एक वाल्टी पानी से नहा लेता है वहीं  स्विमिंग पुल वाटर पार्क में हज़ारों लीटर  पानी व्यर्थ करता है।घरों में सवमर्सिवल लगानें को लोग अधिक महत्व दे रहे हैं।सरकार को परिवार के सदस्यों के आधार पर समर का कनैक्शन देना चाहिए।
जब यह जल संकट अत्यधिक बढ़ जाएगा तो सरकारों के इसके निजीकरण पर विचार करना होगा।बोलीविया का जल युद्ध हमें जल संकटों पर गंभीरता से सोचने के लिए प्रेरित करता है।इस धरती पर जीवन जल के ही कारण है इसलिए पानी की एक एक बूंद के महत्व को समझते हुए हमें जल संरक्षण के प्रति जागरूक होकर पानी के बचाव के लिए उचित प्रयास करने होंगे। 

दीपक तिवारी 'दिव्य'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें