आलू राजा

सोमवार, 14 सितंबर 2020

हिन्दी : तीसरी मां

हिन्दी : तीसरी माँ 

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाने में  तीन माताओं का विशेष योगदान है।पहली जननी;जिसने हमें जन्म दिया।दूसरी मातृभूमि;जिसने हमारा पोषण किया और तीसरी मातृभाषा ;जिसने हमें हमारे विचारों को अभिव्यक्त करने की शक्ति प्रदान की।
हमारी मातृभाषा हिन्दी ने हमे न केवल इस योग्य बनाया कि हम अपनी भावनाएं प्रदर्शित कर सके वल्कि उसने विश्व की सभी भाषाओं का उच्चारण करने की क्षमता भी विकसित की।
हमारे नीति नियंताओं ने 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्दी को  राजभाषा का दर्जा दिया।बाद में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सरकार ने 1953 से प्रतिवर्ष 14 सितंबर को विश्व हिन्दी दिवस मनाने का निर्णय लिया।
अंग्रेजों की ग़ुलामी से उभरे हुए देश में उस समय अंग्रेजियत का प्रभाव था।इसलिए हिंदी को सभ्य समाज में स्थापित होने में समय लगा किन्तु धीरे धीरे हिन्दी उस समाज मैं भी पैठ बनाने लगी जो समाज हिन्दी बोलने को पिछडेपन का प्रतीक मानता था।समय के साथ हिन्दी ने अपना क्षेत्र व्यापक किया।आज सिनेमा कला संचार पत्रकारिता के क्षेत्र मे हिन्दी पूरी तरह स्थापित है।आज विश्व के क़रीब 130 विश्वविद्यालयों  मे हिन्दी पढ़ाई जाती है।आज दुनियां की तीसरी सबसे बड़ी भाषा के रूप में हिन्दी बोली जा रही है।
हिन्दी भाषा की इस प्रगति के स्थायित्व के लिए 10 जनबरी सन् 1975 को नागपुर में पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया।समय समय पर हो रहे  हिन्दी सम्मेलन  यह सिद्ध करते है कि हिन्दी पुत्र इस परंपरा को आगे ले जाते रहेंगे।
हिन्दी ने हमें एक ओर जयशंकर प्रसाद,महादेवी वर्मा,गोपालदास नीरज और कुमार विश्वास जैसे लेखक और कवि प्रदान किए वहीं दूसरी ओर लता मंगेशकर किशोर कुमार और अमिताभ बच्चन जैसे महान कलाकारों की आबाज सुनने का अवसर प्रदान किया।अमीन सयानी की आबाज और बीबीसी की हिन्दी सेवा को हम भूल नहीं पाए होंगे।
भूमंडलीकरण के दौर में हिन्दी को अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ रहा है।पश्चिमी विचारों के अन्धानुकरण ने भारतीय शहरी युवाओं को हिन्दी के प्रति उदासीन बना दिया है।कभी इन्दिरा जी,अटल जी,और नरेन्द्र मोदी जी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में दिया गया भाषण भारतीय स्वाभिमान और हिन्दी के मान को बढाता है  तो आज नव पाश्चात्यवादी  युवा हिन्दी बोलना पिछडेपन का प्रतीक समझ रहा है।कटु सत्य यह है कि  तथाकथित आधुनिक लोग  हिन्दी और अंग्रेजी दोनों के स्वरूप को विकृत कर  'हिंग्लिश'रूपी बोलचाल की भाषा विकसित कर रहे है जिससे व्याकरण की समझ समाप्त हो रही है।
सरकारें भी हिन्दी के उत्थान में विशेष रुचि लेती नलीं दिखाई दे रहीं।जहाँ देश का अधिकांश विद्यार्थी हिन्दी में अच्छी समझ रखता है वहाँ अभियंत्रण,प्रबंधन और चिकित्सा की पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी क्यों ?
ऐसे ज्वलंत प्रश्नों के हल तभ संभव हैं जब विश्व हिन्दी दिवस केवल कर्मकाण्ड के रूप में न मानाकर व्यवहारिक जीवन में उतरे।
आइए ! अपनी तीसरी मां को जगत मां बनानें का संकल्प लें।
हिंदी दिवस की अनंत शुभकामनाएँ…
   
          दीपक तिवारी'दिव्य'